पग पग में है ज़ाल
बिछा, ख़तरों से भरी है डगर,
कोइ बहेलिया है
इंतज़ार में , सुबह शाम दोपहर।
पीछे खंजर है
उनके, जिनके मुँह में मिठी बात है,
बस खिलौने हैं
इनके लिए ये जो तुम्हारे ज़ज्बात हैं।
छीन लेंगे आज़ादी,
काट कर तुम्हारे पर,
ज्यादा शोर मचाओगे
तो कर देंगे अन्दर।
घर में बाज़ार में,
हर जगह खतरा ही खतरा है,
तुम्हारी ज़ेब के पीछे
लगा हर जगह एक जेबकतरा है।
हर मुस्काते चेहरे
के पीछे लालची निग़ाहे हैं,
काँटे छुपे हुए
हैं उनमें, हरी भरी जो राहें है।
धन हवस के पुजारी
ये, हैवानियत के फ़रिश्ते हैं,
बेमानी हर धर्म
इनके लिए, बेमानी हर रिश्ते हैं।
ऐ मासुम कल को लुट ना जाए कही तुम्हारा भोलापन,
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Gautam Kumar