तू जो मिलि न मुझको इसमें तुझको कोई इल्ज़ाम नहीं,
ढूंढा तो पाया हाथ की लकीरों में कहीं भी तेरा कोई नाम नहीं।
हाँ एक लकीर है ज़रूर, तुझपे फिदा हो जाने की,
तुझसे मिलने से पहले तुझसे ज़ुदा हो जाने की।
कोई हमसफ़र न मिला हमको तन्हा ये सफ़र यूँ बीत गया,
वसंत की सुबह न देखी पतझड़ में जीवन बीत गया
हिन्दी पत्रिका सरिता जून २००४ अंक में प्रकाशित।
ढूंढा तो पाया हाथ की लकीरों में कहीं भी तेरा कोई नाम नहीं।
हाँ एक लकीर है ज़रूर, तुझपे फिदा हो जाने की,
तुझसे मिलने से पहले तुझसे ज़ुदा हो जाने की।
कोई हमसफ़र न मिला हमको तन्हा ये सफ़र यूँ बीत गया,
वसंत की सुबह न देखी पतझड़ में जीवन बीत गया
दिल में तस्वीर है उनकी अब भी पर बहूत दूर मनमीत गया ,
वसंत की सुबह न देखि पतझड़ में जीवन बीत गया।
वसंत की सुबह न देखि पतझड़ में जीवन बीत गया।
कभी तो पिघलेंगे ग़म के बदल खुशियाँ बरसेंगी जीवन में,
हरियाली छायेगी सुखी बगिया में यह आस लगी थी मन में।
हरियाली छायेगी सुखी बगिया में यह आस लगी थी मन में।
अब तो पथरा गयी हैं आँखें भी अकेलापन हमसे जीत गया,
वसंत की सुबह न देखी पतझड़ में जीवन बीत गया।
वसंत की सुबह न देखी पतझड़ में जीवन बीत गया।
हिन्दी पत्रिका सरिता जून २००४ अंक में प्रकाशित।