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14 जन॰ 2011

कर्ज़ गुलामी जारी है


प्रस्तुत कविता की हरेक पंक्ति में एक प्रश्न है, जिसका उत्तर हम सबको मालूम है। भारत की ऐसी परिस्थिति के लिए कौन ज़िम्मेदार है? जरा ठहरिये, आप चाहे जो भी नाम लें उन सबमें एक समानता है। वे सभी स्वार्थ, लालच आदि जैसी बिमारियों के शिकार हैं/थे। कया आप इन बिमारियों से ग्रस्त नहीं हैं? तो फिर इस परिस्थिति के लिए आपको भी ज़िम्मेदार क्यों न माना जाए? आत्मचिंतन ज़रूरी है। 

लाल किले पर जो झंडा शान से लहरा रहा है,
जिनका खून है इसके धागे में, याद उनकी दिला रहा है।

आज़ाद भारत में दर्द न होगा, यह सोंच लाठियाँ सह जाते होंगे,
आज़ाद भारत में कोई भूखा नहीं सोएगा, यह सोंच भूख में भी मुस्काते होंगे।

छुप-छुप के जीते होंगे, यह सोंच हम चलेंगे सीना तान,
हमें शान की ज़िन्दगी देने के लिए हँसते-हँसते हो गए कुर्बान।

उन बलिदानियों की आँखों में कुछ ऐसे सपने होंगे,
फिर से चहकेगी सोने की चिड़िया, जब संसद में अपने होंगे।

सुशासन की बयार बहेगी, जब अपने होंगे सरकारी पदों पर,
कोई कलम से विकास गाथा लिखेगा, कोई नज़र रखेगा सरहदों पर।

नहीं होंगे साम्प्रदायिक दंगे, जब फूट डालने वाले चले जाएँगे,
नहीं होगा कोई अगड़ा पिछड़ा, सब कदम से कदम मिलायेंगे।

जिन सपनों के लिए वीरों ने खून से लिखी इबारत,
वो सपने सपने रह गए, बस आज़ाद गो गया भारत।

अज़ाद हुआ अंग्रेजों से पर समस्याओं से आज़ाद हो न सका,
उसका बलिदानी लाडला अब तक चैन से कब्र में सो न सका।

गाँधी, असफाक, सुभाष, भगत सिँह, उनका हम सब पर कर्ज़ है,
उनके अधूरे काम को पूरा करना अब हम सब का फर्ज़ है।



जो खून बहा था सड़कों पर उसमें एक भी कतरा मेरा नहीं था,
जब अमृतसर में बिछ रही थीं लाशें मैं चादर तान सो रहा कहीं था,

जो दे गए हमें आज़ादी उनका कर्ज़ चुकाना होगा,
उनके सपनों का भारत अब जल्द बनाना होगा।

हमें आज़ाद करने को सब कुछ लुटा गए अभागे,
और हम पल में घुटने टेक देते हैं अपने स्वार्थ के आगे।

चोरी घूसखोरी, सीनाज़ोरी जैसे भी अपना काम हो बनता,
अपना फायदा होता रहे, चूल्हे में जाए जनता।

जब तक देश में मौजूद भ्रष्टाचार, भूखमरी, बेकारी है,
घोषित हो स्वाधीन भले हीं, मगर गुलामी ज़ारी है।

आओ अपने स्वार्थों की दे दें आहुति, देश नहीं माँग रहा प्राण,
शहीदों के सपनों का भारत बन जाए हमारा भारत महान।

प्रकाशित: लेखापरीक्षा प्रकाश, जुलाई-सितम्बर 2010.

  

2 टिप्‍पणियां:

  1. आप किसे अपना कहते हैं....
    कौन है अपना
    सब बस अपना ही सोचते हैं, जनता की कौन फिक्र करता है
    आज के परिप्रेक्ष्य में सटीक

    जवाब देंहटाएं
  2. Bahut achhi rachna..Aaj ke mahaul me fit baithti hai..
    Mere bhi blog me aaye..Aapka swagat hai..

    मेरी कविता

    जवाब देंहटाएं

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