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10 मार्च 2011

पागल


लोग पुकारें मुझको पागल,
मारे ताने बेवज़ह।
इसमें क्या दोष मेरा,
मुझे तू दिखती हर जगह।

सुख दुख आँख मिचोली खेलते थे,
जब जीता था अपनों में।
अब तो बस सुख ही सुख है,
जब से जीता हूँ तेरे सपनों मे।

लोग ग़म को भुलाते हैं,
शराब के सहारे।
मैं तेरी याद में मदहोश
पड़ा रहता हूँ तेरी गली के किनारे।

कोई मारे पत्थर
कोई गाली दे कर जाता है,
मैने किसी का क्या बिगाड़ा
मुझे समझ नहीं आता है.

मैं चिल्ला चिल्ला कर पुकारू तुझे
तो लोगों को गुस्सा आता है,
उनका पण्डित उनका मुल्ला
माइक पर चिल्ला किसको बुलाता है.

मैं दिखता हूँ गन्दा तो क्या,
मेरा दिल उनसे साफ है,
मेरा हँसना भी है उनको नागवार
उनका धर्म के नाम पर हत्या माफ़ है.

वे क्या जाने प्रेम का मतलब
जिनके लिए शादी व्यापार है,
तुम दुनिया छोड़ गई तो क्या
मुझको तेरी यादों से भी प्यार है.

करता हूँ बस याद तुझे,
और दूजा कोइ काम नहीं,
नहीं पहचानता किसी और को,
तेरे सिवा याद कोई नाम नहीं।
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