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30 नव॰ 2012

खोया हीरा

एक हीरा था जिसको शीशा समझ खो दिया अनजाने में,
तड़पता हूँ, तरसता हूँ, ढूँढ़ता रहता हूँ हर जगह वीराने में।


कभी बेबात मुस्कुरा कर , कभी मिठी बातों की बौछारों से,
वो हरदम कुछ कहना चाहती थी, कभी फूलों से, कभी उपहारों से।

वो बाँसूरी थी जिसकी वाणी कानों मे मिश्री घोलती थी,
ना समझ सका गहरी आँखें तब क्या मुझसे बोलती थीं।

वह कस्तूरी तो पास ही थी जिसको तकता था दूर तलक,
तब आँखों पर परदा छाया था, अब तरसूँ पाने को एक झलक।

उस समुद्र को रख सके, इतना बड़ा मेरा दिल ना था,
वो स्वर्ण परी थी, ये नाचीज़ ही उसके काबिल ना था।

फूल से दिल को कुचलने की शायद यही सज़ा मुकर्रर है,
वीराने में भटकना, अपना सर पटकना, अब यही मेरा मुकद्दर है।

2 नव॰ 2012

कार वाला बाबू


वह कार से चलता है,
सारा मुहल्ला ज़लता है।

पड़ोस के बनिए के यहाँ से चावल हो लाना,
या सब्जी लेने बाज़ार हो जाना,
पैदल चलने वालों को समझता है हीन,
चाबी घुमाओ और निकल दो एक दो तीन।

पर उनका क्या जो कार से नहीं चलते,
साईकिल पर या पैदल हैं निकलते।
कंजूस है सारे या फिर हैं गरीब ,
ये कहता फूटे हैं उनके नसीब।

हाँ उनके नसीब तो फूटे ही हैं,
कार से भी नहीं चलते,
फिर भी पर्यावरण का विष पीते हैं,
दमा, खाँसी आँखों में जलन झेल के जीते हैं।

धुआ नहीं छोड़ते फिर भी कष्ट झेलते हैं जीने में,
झेलते हैं जेठ की गर्मी माघ पूस के महीने में।

कार वाला तो एसी भी चला लेता है,
ये गरीब क्या करे दिन मे दो तीन बार नहा लेता है।

नहा लेता है पास की नदी मे, नहीं-नहीं नाले में,
नाला ही तो है वह, काला दिखता है दिन के उज़ाले में।

कभी नदी हुआ करता था,
चमचम करता किलकारियाँ भरता था,

अब पड़ोस के कारखाने का कचरा वहन करता है,
जिसमें बाबुओं के लिए शीतल पेय बनता है।

कार वाला गरीबों को देख कर नाक भौह सिकोड़ता है,
अपने ऐशोआराम के लिए उनके हवा पानी में ज़हर घोलता है।

कार वाले बाबू को कब आएगी अकल,
कब पड़ोस से सब्जी लाने गर्व से जाएगा पैदल।


2 अग॰ 2012

एक हज़ार में मेरी बहना है

My Sister

नन्ही सी थी वो,
रोज मिले जेब खर्च के
मेरे पैसों से अपने पैसे मिला कर 
खरीदती थी कोई महंगी चॉकलेट
बाँटती थी मुझसे
खुद लेती थी आधे से थोड़ा ज्यादा,
कहती मैं छोटी हूँ ना,
मैं भी मुँह बिचका कर
दे देता था।
जानता था बड़े होने का मतलब,
एक गर्व सा सीने में उठता था गज़ब,
पर यह भी जानता था कि खुशी-खुशी दे दिया,
तो अगली बार पूरी चॉकलेट हो जाएगी गायब।

बस रक्षा बन्धन का करता था इंतज़ार,
जब वो बिना बाँटे खिलाएगी मिठाई,
क्योंकि मम्मी ने उससे कह रखा था,
इस मिठाई को सिर्फ भाई खाते हैं
वरना इसे खाने वाली बहन को
मुँछें उग आती हैं।


रूला देता था कभी कभी,
चिढ़ा चिढ़ा कर।
Our तिकड़ी (गौरव, निधि, मैं)
उछलता था खुशी से
ताली बजा बजा कर
वो चीखती थी,
दादा जी !!!!!!!!!!!!!
 और मैं भाग जाता था
दुम दबा कर।

क्योंकि जानता था,
दादा जी की दुलारी को
रूलाने कर,
मार पड़ेगी और गायब हो जाएगी,
मेरी हँसी,
फिर वो हँसेगी,
मुँह बना-बना कर।
पर दूसरों से लड़ता था,
जब कोई कुछ कह दे उसे,
क्योंकि जानता था,
राखी के धागों का मोल

भाई दूज के टीके की कीमत
With Her Better Half on Her Marriage

पर चली गई एक दिन
अपने सपनों के राजकुमार के साथ,
और पहली बार रूला गए,
उसके आँसू।
नहीं उछला मैं ताली बजा कर,
लगा जैसे हृदय खोखला हो गया है,
गले में चुभो रहा है कोई काँटे,
खुशी है कि खुश है वो,
अपने जीवन साथी के साथ,
और देख रहा हूँ राह,
अगले रक्षा बन्धन की

जब फिर से
उसके हाथों से खाउँगा मिठाई
बिना उससे बाँटे

7 जन॰ 2012

वीराना


मत आओ मेरे पास, नहीं चाहता बनाना रिश्ता नया,
शरीर छलनी है जख्मों से, नहीं चाहता पाना कोई जख्म नया। 


जो भी आया मेरे जीवन में, मुझे रूला कर छोड़ गया, 
अब और रोना नहीं चाहता, नहीं चाहता बनाना रिश्ता नया। 


मुझ कागज पर कई बार लिख कर मिटाया गया, 
वो अब और कुछ लिखने लायक नहीं, ढूँढ लो कागज नया। 


मुझ गम के मारे को, खुशियाँ रास कहाँ आएँगी,
मेरी अविरल अश्रुओं की धारा में, तुम्हारी खुशियाँ भी बह जाएगी। 


मुझ पतझड़ के मारे को मत देने की कोशिश करो वसंत, 
अब नहीं कोई फूल खिलेगा इसमें, वीरान रहेगा जीवन पर्यंत।
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