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18 सित॰ 2011

अनशन है बेकार


कानून का किला बनाने से पहले उससे बाहर निकलने का सुरंग होता है तैयार,
उसके रखवालों के गले में पट्टा, हाथों में धारहीन थोथे औज़ार ।

धार हीन थोथे औज़ार जिनसे बस कटे आम जनता का पतला गला,
जो टूट जाए ज्यों हीं नेताओं, बड़े अफसरों की मोटी चमडी पर चला ।

43 सालों से पड़े-पड़े लोकपाल बिल हो गया कितना पुराना,
फिर भी हर सवाल के जवाब में प्रक्रियाधीन होने का पुराना बहाना।

ऐसे बिलों पर सांसद लड़ते हैं ऐसे, जैसे हो मुर्ग-बटेर
पर अपना वेतन भत्ता बढाने को एकमत होते लगेगी नहीं देर।

सी बी आई, सी वी सी के गले में होती है सरकारी रस्सी
आज़ाद सी ए जी के हाथों में बस है नखहीन-दंतहीन 1971 का डीपीसी

इमानदार अफसर जो ना गलने देता इनकी दाल,
 शक्तिहीन पोस्टींग देकर करते है किरण बेदी सा हाल,

लोगों के की इच्छा का गला दबा रहे लोकतंत्र के नाम पर,
कहते एक बार चुन कर के भेजा अब नज़र मत रखो हमारे काम पर

फिर पाँच साल बाद दारू, साड़ी, टी वी ले कर आएँगे,
फिर से तुम्हारे हाथों से,  तुम्हारा वोट ले कर जाएँगे

बेरोजगारी, महँगाई, भ्रष्टाचार की मार से, सारी जनता रहेगी बेहाल,
पाँच साल बाद करके झूठे वादे फिर से लगवा लेंगे बत्ती लाल।

जब तक जाति, धर्म, दारू, टीवी, साड़ी होगा वोट देने का आधार,
अन्ना हज़ारे , देशभक्ति के नारे, सारे अनशन हैं बेकार।

रामलीला मैदान जाओ, भारत का झण्डा लहराओ,
पर सबसे पहले निजी जीवन से भ्रष्टाचार दूर भगाओ

सख्त कानून लाओ, भ्रष्टाचारियों को जेल पहुँचाओ,
पर दूसरों को सुधारने से पहले खुद तो सुधर जाओ।

मैं भी अन्ना तू भी अन्ना, ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाओ,
 पहले 50 रूपये सरकाने की जगह 300 का चालान कटवाओ।

अगले चुनाव में इमानदारी समझदारी के साथ बटन दबाना,
दारू, साड़ी, टीवी जाति धर्म के बहकावे में मत आना।

जब तक जनता नहीं लेती, चुनाव में चुनना सीख,
तब तक दफ्तरों में लेने देने वाले मिल जाएँगे घूस की भीख। 
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