नए साल में,
सुरज पूरब से हीं उगेगा,
फिर भी,
जब अस्त होगा,
तब कोई अबला नहीं रोएगी,
उम्मीद है।
नए साल में,
चलने नहीं लगेंगी अदालतें बुलेट
ट्रेन सी,
फिर भी,
पीड़िताएँ इंसाफ के इंतज़ार
में,
आत्महत्या नहीं करेंगी,
उम्मीद है।
नए साल में,
नहीं जागेंगे सभी,
फिर भी,
किसी हत्यारे, बलात्कारी,
भ्रष्टाचारी को,
वोट नहीं देंगे,
उम्मीद है।
नए साल में,
गायब नहीं होगी गरीबी,
फिर भी,
गरीब नहीं बेचेंगे नहीं अपना
कीमती वोट,
दारू, साड़ी, टिवी के लिए,
उम्मीद है।
नए साल में,
अमीर नहीं छोड़ेंगे लालच,
फिर भी,
गरीब को उसका हक देने में,
नहीं हिचकिचाएंगे,
उम्मीद है।
नए साल में,
नहीं खत्म होगा दलितों पर
अत्याचार,
फिर भी,
मिलेगा उनको न्याय,
बदलेगा लोगों का व्यवहार,
उम्मीद है।
नए साल में,
आएंगे कई नए सास बहू के
सिरियल,
फिर भी,
घरों में मिल कर रहेंगी,
सास और बहुएँ,
उम्मीद है।
नए साल में,
भारत नहीं ले पाएगा अमरीका
की जगह,
फिर भी,
प्रगति पथ पर आगे बढेगा,
कई पायदान उपर चढेगा ,
उम्मीद है।
बहुत खूब दोस्त ..
जवाब देंहटाएंकहते हैं कविता बनाई नहीं जाती, बन जाती है अपने आप ..
जब दिल में एह्ससेह्सस और जज्बात मचलने लगते हैं .. जब अंतरात्मा मुस्कराती है या फिर कराह उठती है ..
तो वही भावनाए शब्दों का रूप लेकर निकल पड़ती है ..
तुम्हारे ये कविता भी व्यक्त करती है हर भारतीय की अभिलाषा ..
god bless you..
-sahil
मुक्तछन्द में आपका स्वागत है । उत्क्रिष्ठ रचना ।
जवाब देंहटाएं@Amita :)
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