पसीने की कमाई धुएँ में उड़ा
देते हैं लोग।
जितने पैसों से रामधनी, दिन भर
धुआँ उड़ाता है,
उन पैसों बिन उसका बच्चा भूखा
हीं सो जाता है।
खुद जी भर के पीते हैं, औरों
को भी पिलाते हैं,
मौत बाँटते फिरते है, दोस्ती
की कस्में खाते हैं।
चाहे जितने हों पढ़े-लिखे, खुद
को रोक नहीं पाते,
हाथ में सिगरेट जलता है, काम
करते, पढ़ते, बतियाते।
सिगरेट का धुआँ फेफड़े ही
नहीं,घुस जाता है तन-मन में,
बिन सिगरेट नहीं मनती खुशी,
दु:ख नहीं कटते जीवन में।
सिगरेट पीना कोई जुर्म नहीं, स्टाईल
स्टेटमेंट है भाई,
क्या हुआ जो इसके पीने से
पड़ोसी को उल्टी आई।
जहाँ-जहाँ भी जाते हैं, हवा
में ज़हर घोलते हैं ऐसे,
सारी दुनिया की हवा पर, इनका
अधिकार हो जैसे।
हरेक कश के साथ बनता है, धुएँ
का जो गुब्बारा,
एक दिन सुखा देगा, उनके जीवन
का फब्बारा।
जीवन के अंतिम क्षणों में वो
तरसेंगे पल पल को,
आज उड़ा दे चाहे हस के, याद
करेंगे ये नसीहतें कल को।
अभी अपनी ज़िन्दगी लोग बर्बाद
कर रहे हैं होशों हवास में,
बुढ़ापे में अस्पतालों मे नज़र
आएँगे, नए जीवन की तलाश में।
किस हक़ से लोग अपने जीवन को
करते हैं बर्बाद,
किस-किस का हक़ है उन पर, क्यों
रहता नहीं उन्हें याद।
जब होगा कैंसर, तब वे ऐसे नहीं
खिलखिलाएँगे,
प्रकाशित: लेखापरीक्षा-प्रकाश,
अप्रेल-जून 2009 अंक
nice lines.......
जवाब देंहटाएंashu2aug.blogspot.com
Behad sahee likha hai!
जवाब देंहटाएंAapka blog jagat me swagat hai.
इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा आपने.....हमें नशा मुक्त भारत चाहिए
जवाब देंहटाएंsparkindians.blogspot.com
Behad sahee kaha!
जवाब देंहटाएंधुम्रपान के दुष्परिणामों के प्रति चेतना जगाती प्रेरक तथा बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंsuch a good poem having great moral message.....i really appreciate your enthusiasm against these social issues like smoking
जवाब देंहटाएंhttp://isitindya.blogspot.com
bahut sundar prastuti
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति..धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंbohot hi umda rachna.... :)
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