लोक सम्पदा का रक्षक लेखा परीक्षक,
हमारे बिना कुछ ऐसे चलता सरकार का कारोबार,
लोक सेवक बन जाते लोक हित भक्षक,
नियमों का डल जाता आचार.
आमदनी अठन्नी हो जाती,
आसमान छूने लगते विभागीय खर्चे,
गली-गली नुक्कड़ नुक्कड़ पर,
होते बस घोटालों के चर्चे.
नीतियाँ बनतीं, बहस होतीं,सपने दिखाए जाते,
कार्यपालिका के हाथों में आते ही,
कानून किताबों में दफना दिए जाते.
विधायिका को धोखे देती रहती,
कार्यपालिका करती जो होती इच्छा,
कैसे उजागर होते घोटाले,
जो हम न करते लेखापरीक्षा.
प्रकाशित: सुबह (कार्यालय: प्रधान निदेशक, लेखापरीक्षा, केंद्रीय, कोलकाता की राजभाषा पत्रिका) ,दिसम्बर – 2007
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Gautam Kumar