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24 दिस॰ 2010
22 नव॰ 2010
कोई अपना होता
इस अनजाने शहर में,
काश कोई अपना मिल जाता,
जिसे हम अपने मन की सुनाते,
जो अपने दिल की बताता.
साथ चलता कोई
इन अनजाने गलियारों में,
भर देता सुखद अर्थ कोई
इन बेअर्थ बहारों में.
कोई होता ऐसा कन्धा,
जिस पर जब अपना सर रख देता,
वो सुख भर देता जीवन में,
सारी पीड़ा हर लेता.
अब तक तो मेरा साथी है,
बस मेरा अकेलापन, जो साथ नहीं छोड़ता,
शहर के गलियारों में, महफ़िल में, तन्हाई में,
मुझसे मुँह नहीं मोड़ता.
प्रकाशित: सुबह
15 नव॰ 2010
आपका एक ब्लॉग तो होना हीं चाहिए
यह लेख
मैंने मेरे
विभाग भारतीय
लेखा एवं लेखापरीक्षा
विभाग (CAG)
के अधिकारियों के लिए लिखा
है जिनमें से
कई अभी तक
ब्लॉगींग की ज़ादूई
दुनिया से दूर
हैं। इसे मैं
अपने विभाग के
लेखापरीक्षा-प्रकाश
नामक
त्रैमासिक
पत्रिका में
प्रकाशित
करने के लिए
देने की सोंच
रहा हूँ। मैं
आप तमाम
चिट्ठाकार
मित्रों से अनुरोध
करता हूँ कि
आप इसे पढ़ कर
इसमें यदि कुछ
जोड़ सकें जो
कि
चिट्ठाकारी
को मेरे विभाग
के अधिकारियों
के मन तक
पहुँचा सके तो
कृपा होगी।
आपके द्वारा
सुझाए गए परिवर्तनों
को शामिल करने
के बाद हीं
मैं इसे
लेखापरीक्षा
के अगले अंक
के लिए
भेजूँगा।
आपका एक ब्लॉग होना हीं चाहिए
ब्लॉगों के
बारे में सुना
है आपने?
कमसे-कम एस ए
एस परीक्षा
(अधिनस्थ
लेखापरीक्षा
सेवा परीक्षा)
के
सूचना
प्रोद्योगिकी
के प्रश्नपत्र
की तैयारी के
समय रटा तो
जरूर होगा Blog एक परिवर्णी
शब्द (Acronym) है जिसका
पूरा स्वरूप
है वेब लॉग
अर्थात अंतर्जाल
(Internet) पर
लिखा जाने
वाला
रोजनामचा (log)। पर इसे
रोजानमचा भी
मत समझ
लीजिएगा। आज
ब्लॉग एक
रोजनामचा से
कहीं ज्यादा
है और अगर आप
अधिकतम
चिट्ठाकारों (Bloggers) के चिट्ठों (Posts) को
देखेंगे तो
आपको इस शब्द
का प्रायोगिक
मतलब समझ में
आएगा जो रोजनामचे
से कहीं अधिक
है। ब्लॉग पर
सिर्फ गद्य और
पद्य
हीं नहीं बल्कि
मल्टीमिडिया
फाइले जैसे कि
गाने,
तस्वीरें और
चलचित्र भी
संजोये जा
सकते हैं ।
अगर आपको
लगता है कि
अभी यह तकनीक
नई है तो आपकी
जानकारी के
लिए बता दूँ कि
जस्टीन हॉल को
1994 में प्रथम
बार ब्लॉगिंग
करने का श्रेय
दिया जाता है।
वेबलॉग शब्द
का ईज़ाद 17 दिसम्बर 1997 को
श्री जोर्न
बार्जर (Jorn Barger) ने
किया था परंतु
वेबलॉग को पीटर
मेर्होल्ज़ (Peter Merholz) ने अपने ब्लॉग
पर प्रथम बार ब्लॉग
नाम से
पुकारा। हुआ
यूँ कि 1999 में
उन्होनें
मज़ाक में अपने
ब्लॉग पर Web Log के We और bLog को अलग
अलग लिख दिया।
अगर आप इसके
क्रमिक विकास
के बारे में
ज्यादा जानना
चाहते हैं तो
फिर विकिपिडिया
(http://en.wikipedia.org/wiki/Blog) पर जा कर इसके
जन्म,
विद्यारम्भ
आदि विभिन्न संस्कारों
के बारे में
पढ़ सकते हैं ।
ब्लॉगिंग एक
समांतर
पत्रकारिता
का रूप ले चुका
है। वह
राजनैतिक
संकट, जिसके
कारण अमरीका
के सीनेटर
ट्रेंट लॉट्ट
को इस्तीफा
देना पड़ा,
लोगों की
ब्लॉगिंग की
हीं उपज़ थी,
अन्यथा मिडिया
ने तो उनके
विवादास्पद
बयान को तो
जैसे दबा हीं
दिया था । ऐसे
कई उदाहरण हैं
जो यह साबित
करते हैं कि
ब्लॉग जनता की
आवाज़ बनती जा
रही है। भारत
के कुछ धुरन्धर
चिट्ठाकारों
ने 2009 में
इलाहाबाद में चिट्ठाकारों
का एक सम्मेलन
आयोजित किया
था जिसमें
नामी लेखक
श्री नामवर
सिँह ने भी
भाग लिया था। हाल
हीं में
दिल्ली भी ऐसा
एक आयोजन देख
चुका है। इससे
यह साबित होता
है कि भारत
में भी अब
चिट्ठाकारी
को लोग
गंभीरता से
लेने लगे हैं।
ब्लॉग दिवस : हर वर्ष
चिट्ठाकारों
की दुनिया में
31 अगस्त को
ब्लॉग दिवस के
रूप में मनाया
जाता है। इस
दिनांक को
चुनने का कारण
है 3108 लिखने पर
उसका अंग्रेजी
में Blog की तरह
दिखना।
ज्यादा
जानकारी http://www.blogday.org पर उपलब्ध
है।
अगर आपको
लगता है कि
आपको
ब्लॉगिंग
करने की जरूरत
हीं क्या है
तो ब्लॉगिंग
के निम्न
फायदों पर गौर
कीजिए:
1) आपकी मित्र
मंडली बढ़ेगी : हो सकता है कि
आपकी मित्र
मंडली में
आपको और आपके
अनोखी बातों
को कोई तरज़ीह
नहीं देता हो,
पर ईंटरनेट पर
आपको अपने
जैसे अनेको
मिल जाएँगे जो
आपकी तरह
सोंचते हैं
अथवा आपके
बातों की खामियों
को आपके मित्र
से बेहतर तरीके
से आपको समझा
सकते हैं ।
चाहे जो भी हो
आपकी मित्र
मंडली में
इज़ाफा होगा और
आप अपने आपको
अकेला महसूस
नहीं करेंगे।
आपको बताते
हुए हर्ष हो
रहा है कि
मेरे ब्लॉग को
अब तक 2010 मई से 2010
दिसम्बर तक
भारत से 366 बार
अमरीका से 88
बार यूनाईटेड
किंगडम से 2
बार पाकिस्तान
से 2 बार,
जर्मनी से एक
बार, रूस से एक
बार, स्वीडन
से एक बार और
दक्षिण
अफ्रिका से एक
बार देखा जा
चुका है। इसके
पहले की अवधि
की सांख्यिकी
उपलब्ध नहीं
है क्योंकि यह
सुविधा मेरे ब्लोग
प्रदानकर्ता
कम्पनी गूगल
ने हाल ही मे शुरू
की है। और तो
और अब तक कुल 30
टिप्पणियाँ
भी आ चुकी हैं
। है ना ये दिल
खुश करने वाली
बात? कई
विदेशी नेता
तो ब्लॉगिंग
का प्रयोग कर
अपने चुनाव
क्षेत्र की आम
ज़नता के साथ
दीवाने आम लगाते
हैं।
2) यह आपकी
पहचान का
हिस्सा बन
जाती है: अपने विभाग
में में
निदेशक
सुश्री
अतुर्वा सिन्हा,
जो कि ब्लॉगिंग
की शौकीन हैं,
ने अपने ब्लॉग
My Blue Dot of Thoughts पर लिखा
है (अनुवादित): “युद्ध
संस्मरण के
लेखक एलन शॉ ने
अपनी किताब "Marching on to Laffan's Plain" का
एक अंश मेरे
ब्लॉग पर पढ़ने
पर मुझे एक पत्र लिखा. वहीं
एक अन्य अवसर
पर जब मैंने एक व्यापार
सहयोगी को फोन
लगाया तो उसकी
सचिव ने फोन
लगाने से पहले
मुझसे पूछा कि
क्या मैं वही
अतुर्वा हूँ
जो Blue Dot of Thoughts नामक
ब्लॉग लिखती
है? मैं तो दंग
रह गई!“ यह अनुभव
किसी का भी हो
सकता है, आपका
भी। इस दुनिया
में हर एक
आदमी एक दूसरे
से भिन्न है
और यही हम सब
के व्यक्तित्व
की सुन्दरता
है । ब्लॉगिंग
इसे और निखारता
है। आज के
ज़माने में अगर
दीवार जैसी
फिल्म दुबारा
बनती है तो उस
फिल्म के
प्रसिद्ध “मेरे पास
माँ वाले सीन
में” एक ज़ुमला और
अवश्य जुड़
जाएगा: मेरे
ब्लॉग के 10000....0 लोअर्स
(अनुसरणकर्ता)
हैं, तुम्हारे
कितने हैं???
3) यह आपके
लेखापरीक्षा
के काम में भी
मदद कर सकती
है:अगर आप
शर्लक होम्स
छाप
लेखापरीक्षा
में विश्वास
रखते है तो
ब्लॉगिंग
आपके काम आ
सकती है। कई
विभागों के
कर्मचारी
ब्लॉगों मे
अपने कार्यालय
में व्याप्त
गड़बड़झाले को
उजागर करते रहते
हैं (भले
गुमनाम रह कर
ही)। तो फिर
उठाइये
दूरबीन …इश्स्स्स्स…माउस और
शुरू हो
जाइये।
4) यह आपके
अन्दर छुपी
हुई प्रतिभा
को निखारने में
मदद करेगा: आप अपने
दिमाग को और
उसकी छुपी हुई
शक्तियों को
जानने में सफल
होंगे। अगर
आपको यकीन
नहीं हो रहा
है तो आप अभी
किसी विषय पर
लिखने का
प्रयास
कीजिए। आप पाएँगे
की आपको खुद
से इतने अच्छे
लेख की उम्मीद
नहीं थी।
5) ब्लॉगिंग
आपको आपकी
समस्याएँ
सुलझाने में मदद
कर सकता है: अगर आप लोगों
से सलाह लेकर
अपनी
समस्याएँ सुलझाने
में यकीन रखते
हैं पर अपनी
बात को लोगों से
बताने से भी
डरते हैं तो
बना लिजिए एक
गुमनाम ब्लॉग
और भेज दीजिए
अपनी
समस्याएँ
दुनिया के
लोगों के कम्प्यूटर
स्क्रीन पर।
जल्द हीं आपका
तारनहार कोई
रामवाण सूझा
हीं देगा ।
अगर कोई सलाह
न भी दे तो मन
में गुणा जोड़
कर के जीवन के
गणित को सुलझाने
से अच्छा है
कि उसे कागज़
पर कर के सुलझाया
जाए। यही कारण
है कि कई
मनोवैज्ञानिक
गहन से गहन
मानसिक
बिमारियों
में डायरी लिखने
की सलाह देते
हैं। आश्चर्य
नहीं है कि भड़ास
नाम से भी एक
ब्लॉग मौजूद
है। दिमाग में
अच्छी बाते ही
रहनी चाहिए,
कुंठा, घृणा,
इर्ष्या आदि
को बाहर निकाल
देने में हीं
समझदारी है। इंटरनेट
पर उपलब्ध
सामग्री से
पता चलता है
कि
मनोवैज्ञानिक
इसके उपर शोध
कर रहे है और
उन्हें
लगातार नई नई
बाते मालूम चल
रही हैं।
दिमाग बड़ा
ज़टिल है, है न?
6) आप दुनिया को
बेहतर समझ
सकते हैं: ब्लॉगिंग के
द्वारा आप आम
आदमी से जूड़ते
हैं जो कोई
महान शक्सीयत
नहीं है बल्कि
आपकी तरह एक
आम आदमी है, जो
कुछ बोलता है
या सोंचता है
तो उसके पहले
छवि, पद, गरिमा
की चिंता नहीं
करता। इससे
आपका
आत्मविश्वास
बढ़ेगा।
7) आपकी लेखन
क्षमता का
विकास होगा: बचपन में
स्कूल में
आपने निबन्ध
आदि तो लिखा हीं
होगा। यहाँ तक
की
प्रतिष्ठित
सिविल सेवा परीक्षा
में भी निबन्ध
एक विषय है।
आखिर इसके
पीछे कुछ तो
कारण अवश्य
है! वह कारण है
लेखन क्षमता
का विकास और
प्रस्तुतिकरण
के तरीके में
सुधार होता
है। पाठकों की
राय तो आपके लेख
को और सुधारने
में मदद करती
है और प्रशंसा
आपका हौसला
बढ़ाती है। लेखापरीक्षा
प्रतिवेदनों
को तैयार करते
करते हमारा
लेखन कौशल इतना
तो बन ही जाता
है कि हम
तथ्यों को
रचनात्मक रूप
में प्रस्तुत
कर सकें।
कार्यालयी
प्रतिवेदनों
में तो हमारी
लेखनी
विनम्रता से
बोलने को
मज़बूर होती है
पर समसामयिक
विषयों पर हम
अपना वक्तव्य
अपनी मर्जी से
लोगों के
सामने तो रख
हीं सकते हैं।
8) जानकारी में
बढोतरी : सामान्यता
किसी विषय पर
ब्लॉग लिखने से
पहले लोग उस
विषय से
सम्बन्धित
अन्य ब्लॉग जरूर
पढ़ते हैं,
इससे उनकी
जानकारी तो
बढ़ती ही है।
अपने ब्लॉग पर
मिली रायों (comments) से रही
सही कसर भी
पूरी हो जाती
है। कभी कभी
आपका पाठक
किसी ऐसे
ब्लॉग के बारे
में आपको बताता
है जिसमे उसी
विषय के उपर
आपसे अच्छा
लिखा है। ज्ञान
बाँटने से
बढ़ता है और
संजो कर रखने
से सड़ जाता
है। अपना
ज्ञान लोगों
से बाँटने से
आपको उसी विषय
पर लोगों के
विचार भी
जानने को मिलेंगे।
यह निश्चय हीं
आपके मौजूदा
ज्ञान में वृद्धि
करेगा और
उसमें मौजूद
रिक्त स्थानों
(Gaps) को
भरेगा। सीखना एक
सतत
प्रक्रिया
है। चलती रहनी
चाहिए।
9) कौन
सुनेगा किसको
सुनाएँ, इसिलिए
चुप रहते है ? बन्द
किजिए रोना और
खुल कर
चिल्लाइये ब्लॉगजगत
में। अजी जरूर
सुनेंगे दम तो
लगाइये। वैसे
ये समस्या
मेरे जैसे
नवजात कवियों
के साथ ज्यादा
होती है। भीड़
भाग जाती है
हमारी
कविताएँ सुन
कर। लेखापरीक्षा-प्रकाश
के अलावा
ब्लॉग हीं एक
माध्यम है
जिसके जरिए हम
श्रोता
तलाशते रहते
हैं। लेखापरीक्षा-प्रकाश
कोई पढ़े न पढ़े
मेरे ब्लॉग पर
मख्खनी
अन्दाज में जब
पाठक प्रशंसा
करते हैं तब
दिल गद-गद हो
जाता है।
10) सेवानिवृति
के बाद एक
अच्छा
टाइमपास: अगर जोड़ों के
दर्द के कारण
आप
सेवानिवृति
के बाद अपने
मनपसन्द
मित्र के घर
नहीं जा सकते
और उनके आपके
घर में जमे
रहने को आपकी
बहू पसन्द नहीं
करती तो आप
ब्लॉगिंग के
ज़रिये उनसे
विचारों की
कुश्ती ज़ारी
रख सकते हैं
और इसमें हम युवाओं
को भी शामिल
कर सकते हैं ।
कुछ हमें भी
बता के जाएँ चचा
और हमारी भी
सुन लें।
अच्छा रहेगा
ना। याद कीजिए
राजकपूर के एक
फिल्म का वो
गाना “एक दिन बिक
जाएगा माटी के
मोल, जग में रह
जाएँगे
प्यारे तेरे
बोल”| ब्लॉगिंग की
बदौलत आप अपने
बोल-वचन
(विचार) तो
दुनिया के लिए
छोड़ कर जा हीं
सकते हैं जो
कि डायरी के
पन्नों की तरह
पीले हो कर
आपके पोते
परपोतों के
द्वारा रद्दी
में नहीं
बिकेंगे।
इसलिए इससे
पहले कि आप
अपने प्राणों
से प्रिय अपने
शरीर को राख़
या मिट्टी में
मिलते देखें, अपने
व्यक्तित्व
को एक ब्लॉग
के माध्यम से
आत्मा की तरह
अमर कर दें।
11) हो सकता है कि
आपका ब्लॉग
किसी प्रकाशक
की नज़र में आ
जाए और आप
लेखक/कवि बन
जाएँ: मैं
मज़ाक बिल्कुल
नहीं कर रहा
हूँ, ऐसा
बहुतों के साथ
हुआ है। कई
किताबों के
प्रकाशकों ने
लेखक को उनके
ब्लॉग देख कर
हीं चुना।
लेखापरीक्षा
से सम्बन्धित
अपने तकनीकी
कौशल को यदि
आप ब्लॉग का
रूप देकर पूरे
विभाग के लिए
उपलब्ध कराते
हैं और यह
उच्च
अधिकारियों
की नज़र में
आता है तो
मेरे विचार से
वे निश्चय हीं
हमारे विभाग
से सम्बन्धित
प्रशिक्षण
पुस्तक अथवा
नियम
पुस्तकों के
लिखते समय
आपका सहयोग लेना
चाहेंगे।
एक
नौसिखुआ
चिट्ठाकार के सामने
आने वाली
समस्याएँ और
उनका समाधान:
1.
लिखने
के लिए विषय
का अभाव: ब्लॉग के
विषय कुछ भी
हो सकते हैं,
समाचार पत्र
मे पढ़े गए
किसी घटना के
बारे में आपके
विचार, आपके
कार्यालय में
हाल में
सम्पन्न कोई
समारोह, किसी
टी वी सिरियल
में हो रही
घटनाओं पर आपके
विचार या यों
कहलें आपके
दिमाग में
जितने भी विषय
आ सकते हैं वे सभी।
यह तो
अंतर्जाल पर
आपके मोहल्ले
के नुक्कड़ का
प्रतिरूप हीं
है। पकड़ कर
कैद कर लिजिए
अपने विचार,
इससे पहले की
वे दिमाग के सागर
में मोती की
तरह खो जाएँ।
विचार बड़े
चंचल होते
हैं, मछली की
तरह, आपने
छोड़ा नहीं कि
बस उनको
दुबारा
प्राप्त करना
बड़ा कठिन हो
जाएगा। अच्छा
है कि उसे एक
कागज़ पर लिख
लें और समय
मिलने पर उस
पर एक ब्लॉग
लिख डालें।
तैयार हो गया
आपके ब्लॉग के
लिए अगला
चिट्ठा (Post)।
2.
अमर्यादित
शब्द एवं
विषय: कुछ
लोग अंतर्जाल
पर गुमनाम
रहकर अपने मन
में छुपे शैतान
को बाहर करने
में लगे रहते
हैं और चिट्ठाकारों
और उसके
पाठकों के
मुँह का ज़ायका
बिगाड़ते रहते हैं।
इससे
नफ़रत फैलती है
और मर्यादा का
ध्यान रख कर
किया जाने पर
हीं आपके
ब्लॉग पर स्वस्थ
बहस की बगिया
महक सकती है। ऐसे
शरारती
तत्वों के साथ
निबटने का
तरीका है मॉडरेशन
विकल्प का
प्रयोग जिससे
बिना आपकी अनुमति
के किसी भी
पाठक की
टिप्पणी आपके
ब्लॉग पर नहीं
दिखेगी। कहने
की ज़रूरत नहीं
है कि आप भी
आवेश में अथवा
किन्हीं अन्य
कारणों से
किसी के ब्लॉग
में कूड़ा उड़ेलने
से बचें।
ब्लॉग आपके
स्वतंत्र
विचारों की
अभिव्यक्ति
का माध्यम है,
स्वच्छंद
विचारों का
नहीं।
3.
नई
मिली बोलने की
आज़ादी का
दुरूपयोग: कई लोग
ब्लॉगिंग का
प्रयोग अपने
अन्दर छुपी
भड़ास निकालने
के लिए करते
हैं चाहे वह अपने
नियोक्ता, बॉस
के प्रति हो
या किसी धर्म,
राजनैतिक
पार्टी अथवा
व्यक्ति के
लिए। ऐसे में
आपको इस बात
से आगाह कराना
उचित है कि कई
मामलों में
इससे चिट्ठाकारों
को कानूनी
कार्यवाई का
सामना करना पड़ा
है।
चिट्ठाकारी
का स्वर्णिम
सूत्र है, वैसा
कुछ भी नहीं
लिखना जो
वास्तविक
जीवन में बोलना
अनुचित है। इस
मायने में
बेनामी रहना
भी काम नहीं
आता है,
क्योंकि यदि
मामला आपराधिक
हो तो जाँच
एजेंसीयाँ
दोषी को ढ़ूँढ़
निकालती हैं।
वैसे
चिट्ठाकारों
की आचार
संहिता के बारे
में जानना हो
तो आप http://en.wikipedia.org/wiki/Blogger's_code_of_conduct पर जा कर पढ़
सकते हैं।
4.
आगंतुकों
का न आना: अगर आपके
ब्लॉग पर दो
चार चिट्ठे लग
चुके हैं तो
आप अपने ब्लॉग
को चिट्ठा
समूच्चयक (Blog Aggregator) पर पंजीकृत
करवा लें। इन
एग्रीगेटरो
का काम होता
है उनके साथ
पंजीकृत
चिट्ठाकारों
के चिट्ठों का
शीर्षक एवं
शुरू के कुछ
वाक्य प्रकाशित
होते ही उनके
मुक्य पृष्ठ
पर सूचित कर
देना। इससे
आपके ब्लॉग के
आगंतुकों में
दिन दूनी रात
चौगुनी
तरक्की होगी ।
हिन्दी ब्लॉग
जगत में http://chitthajagat.in/ पर उपलब्ध
चिट्ठाजगत
नाम का चिट्ठा
समूच्चयक
काफी
लोकप्रिय हो
चुका है ।
5.
आगंतुकों
की टिप्पणियाँ
नहीं आना: कोई ज़रूरी
नहीं है कि
आपके ब्लॉग पर
हर पाठक टिप्पणी
छोड़ कर हीं
जाए। यह पाठक
के लेखन क्षमता,
मूड, समझ, आपके
ब्लॉग को
क्लीक करने के
उद्देश्य (हो
सकता है कि
आपके ब्लॉग
में आपने कोई
शब्द कई बार
इस्तेमाल
किया हो पर
आपका चिट्ठा
उस शब्द के
बारे में नही
है। ऐसे में
पाठक को गूगल
सर्च इंजन भूल
से आपके ब्लॉग
तक ले आता है।
)टिप्पणियों
की संख्या
उतनी
महत्वपूर्ण
नहीं है जितनी
की आगंतुकों
की संख्या।
फिर भी पाठकों
से
टिप्पणियाँ
निकलवाने का
एक बेहतर
तरीका बताता
हूँ।
चिट्ठाकारी
की दुनिया में
एक बात बहुत
काम आती है: “ दूसरों
से भी वैसा ही
व्यवहार करो
जैसा कि तुम्हें
अपने साथ
अपेक्षित है” कहने का
सीधा-सीधा
मतलब है-तू
मेरी गा
मैं तेरी
गाउँ। यदि आप
चाहते हैं कि
लोग आपके
ब्लॉग पर आएँ
और आपके
चिट्ठों पर भी
टिप्पणियाँ
करें तो ऐसा आपको
उनके चिट्ठों
के साथ भी
करना पड़ेगा।
ध्यान रहे ऐसा
आप इमानदारी
से करें
अर्थात उनका
चिट्ठा पढ़ने के
बाद। सच्चाई
छुप नहीं सकती
बनावट के
उसूलों से,
खुशबू आ नहीं
सकती कभी कागज़
के फूलों से। अच्छा
होगा यदि उन
चिट्ठों पर
टिप्पणी करें
जो आपके विषय
से सम्बन्धित
हैं।
6.
घर
पर इन्टरनेट
की
अनुप्लब्धता
और कार्यालय
में काम का
बोझ: यदि
आपके घर में
कम्प्यूटर है
तो आप घर बैठे
वर्ड में अपना
चिट्ठा तैयार
कर दें।
कार्यालय में
पाँच मिनट का
समय तो निकाल
हीं सकते हैं
भोजनावकाश के
समय? उसी समय
इंटरनेट खोल
कर अपने ब्लॉग
पर अपना अगला
चिट्ठा चस्पा
कर दें। साथ
हीं साथ आए
हुए नई
टिप्पणियों को
वर्ड में
चस्पा कर घर
ले जाएँ जिससे
कि आप बिना
किसी परेशानी
के आराम से
उसे पढ़ सकें
और उत्तर
तैयार कर
सकें। न हिंग
लगेगी, न
फ़िटकरी और रंग
भी चोख़ा आएगा।
कैसे बनाएँ
अपना ब्लॉग
इससे
पहले कि आप
कीबोर्ड ले कर
ब्लॉगिंग की
दुनिया में
कूद जाए आपसे
अनुरोध है कि
आप थोड़ा माउस
घीस लें। कहने
का मतलब है कि
कुछ अच्छे
ब्लॉग ज़रूर
देख लें। अब
मुझे ज्यादा
तो नहीं मालूम
फिर भी मुझे
निम्न
ब्लॉग्स
अच्छे लगे:
शीर्षक
|
पता
|
लेखक
|
भाषा
|
विषय
|
मेरे
मन के आईने
में
|
मैं
|
हिन्दी,
अंग्रेजी
मिश्रित
|
कविताएँ,
लेख
|
|
A Blue Dot of
Thoughts
|
सुश्री
अतुर्वा
सिन्हा,
निदेशक,
भारतीय लेखा तथा
लेखापरीक्षा
विभाग
|
अंग्रेजी
|
लेख,
संस्मरण
|
|
Bend It- Nature
explains it all
|
श्री
हंसराज रॉय,
सलेपअ, का: प्रधान
निदेशक,
लेखापरीक्षा,
कोलकाता
|
अंग्रेजी
|
रंगों
का दार्शनिक
विश्लेषण
|
|
चला
बिहारी
ब्लॉगर बनने
|
श्री
सलील वर्मा,
सरकारी सेवक
|
बिहारी
हिन्दी
|
समसामयिक
एवं दैनिक
अनुभव
|
|
उड़न
तश्तरी
|
श्री
समीर लाल,
चार्टर्ड
एकाउंटैंट,
कनाडा
|
हिन्दी
|
व्यक्तिगत
अनुभव,
व्यंग्य,
कविताएँ
|
|
मिसगाइडेड
मिसाइल
|
श्री
कुमार आलोक,
संवाददाता,
दूरदर्शन
|
हिन्दी
|
समसामयिक
|
|
संवेदना
के स्वर
|
श्री
सलिल वर्मा
एवं श्री
चैतन्य आलोक,
दोनो सरकारी
सेवक
|
हिन्दी
|
समसामयिक
एवं दैनिक
अनुभव
|
|
लाईट
ले यार
|
श्री
सतीश
सक्सेना
|
हिन्दी
|
समसामयिक
एवं
व्यक्तिगत
अनुभव
|
|
चक्रधर की चकल्लस
|
श्री
अशोक चक्रधर, विख्यात हास्य कवि
|
हिन्दी
|
व्यक्तिगत
अनुभव
|
|
देशनामा
|
श्री
खुशदीप सहगल
|
हिन्दी
|
समसामयिक
एवं
व्यक्तिगत
अनुभव
|
अपने मनपसन्द विषय पर ब्लॉग तलाशने के लिए आप गूगल ब्लॉग खोजी इंजन की भी सहायता ले सकते हैं जिसका पता है: http://blogsearch.google.co.in/?hl=en&tab=wb । टेक्नोक्राटी भी एक मशहूर ब्लॉग खोजी इंजन है जो कि http://technorati.com/ पर उपलब्ध है।
तो
फिर तैयार हैं
एक ब्लॉग
बनाने के लिए? क्या
चाहिए ब्लॉग
बनाने के लिए:
थोड़ी हल्दी,
थोड़ा धनिया और
नमक
स्वादानुसार.....चिंता
ना करें ऐसा
कुछ भी नहीं
लगेगा। वैसे
तो कई
कम्पनियाँ
ब्लॉग बनाने
के लिए सेवा
देती हैं ,
मुझे इस मामले
में blogspot.com सबसे
बेहतरीन लगता
है। इसका कारण
है इसका Google के अन्य
उत्पादों के
साथ सरल
सामंजस्य। मैंने
अपना ब्लॉग भी
Blogspot.com पर
बनाया है। मैंने
इसके लिए न्यूनतम
आवश्यकताओं
को नीचे लिख
दिया है:
1) एक Google खाता. अगर आप Orkut, Google Groups, Google Documents अथवा अन्य
कोई भी गूगल
उत्पाद
प्रयोग करते
हैं तो आपके
पास गूगल खाता
है। उसका
लॉगइन और कूटशब्द
(Password) प्रयोग
कर आप आज हीं
चिट्ठाकारी
शुरू कर सकते हैं।
अगर ना भी हो
तो किसी भी Blogspot वाले ब्लॉग
को खोलने पर
आप उपर दायीं
तरफ Create Blog पर क्लिक कर
के अपना ब्लॉग
बना सकते हैं।
अगर आपके पास
गूगल खाता है
तो पहले Sign Inपर क्लिक
करें उसके बाद
Create Blog पर क्लिक
करें।
2) एक अच्छा सा
पता। Blogspot पर के पते कुछ
इस प्रकार के
होते हैं:
आपकेद्वाराचयनितशब्द.blogspot.com. आप
सोंच विचार कर
कोई अच्छा सा
शब्द चुन लें।
यदि वह किसी
ने प्रयोग
नहीं किया
होगा तो आप
निश्वय हीं
उसे अपने
ब्लॉग के पते
का हिस्सा बना
सकते हैं।
3) एक अच्छा सा
शीर्षक: यह आपके
ब्लॉग के विषय
से मेल खाना
चाहिए। जैसे
यदि आपका
ब्लॉग गम्भीर
विषयों पर है
तो फिर कोई
व्यंगात्मक
शीर्षक इस पर
नहीं जँचेगा।
4) एक डिजिटल
तस्वीर: अगर आपके पास आपकी
एक डिजिटल तस्वीर
है (स्कैंड या
डिजिटल कैमरे
से खींचा हुआ)
तो अच्छा होगा
वैसे यह भी
जरूरी नहीं
है। कहने की
ज़रूरत नहीं है
कि आपकी
तस्वीर पास से
अच्छे प्रकाश
में ली हुई
होनी चाहिए और
सजग रह कर
खिंचवाई हुई
होनी चाहिए।
ज्यादा
खूबसूरत
डिजाईन का
ब्लॉग बनाने
से ज्यादा
बेहतर है
ज्यादा
खूबसूरत
बातों का ब्लॉग
बनाना।
सुन्दर ब्लॉग
लोगों को एक
पल उसे पढ़ने
को तो प्रेरित
कर सकता है पर
अगर बातें
खोखली हुई तो
फिर पाठक
दुबारा आपके
ब्लॉग पर नहीं
आएगा। तो फिर
शुरू हो
जाईये। http://www.howtomakemyblog.com पर अन्य
तकनीकी
ज़ानकारियाँ
उपलब्ध हैं । लेख को
विराम देने से
पूर्व उन
अनगिनत
लेखकों का
धन्यवाद न
करूं जिनके
ब्लॉग को पढ़ने
के बाद इस
विषय पर मुझे
खुद का एक लेख
लिखने की
प्रेरणा मिली
तो बहुत बईमानी
होगी।
अगर
मेरे लेख से
आपको अपना
ब्लॉग बनाने
की प्रेरणा
मिली हो अथवा
आप अभी भी
संशय महसूस
रहे हैं तो
कृपया
ईंटरनेट पर
निम्न पता खोल
कर एक कमेंट
ज़रूर छोड़ जाएँ
(यह भी कमेंट
पाने का मेरा नया
तरीका है)।
मुझे अच्छा
लगेगा।
http://kutariyar.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
प्रकाशित: लेखापरीक्षा-प्रकाश अक्तूबर-दिसम्बर, 2010
http://kutariyar.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
प्रकाशित: लेखापरीक्षा-प्रकाश अक्तूबर-दिसम्बर, 2010
20 अक्टू॰ 2010
Why should we use fountain pen
I submitted this article on the Orkut community for fountain pen lovers (http://www.orkut.co.in/Main#CommMsgs?cmm=12970758&tid=5316153722655895858&start=1) on 23 March 2009.
1) Its
environment friendly: The ball pens generate a lot of plastic and metal wastes
in the form of empty refills. Moreover, each refill comes in its own plastic
packing which too adds to the already clogged drains. Unfortunately, these days
write and throw kind of single use ball pens are very popular. Compare this to
the fountain pens. No empty refills, no plastic packing of the inkpots and the
inkpot too, being made of glass and an aluminum/plastic cap is recyclable.
2) It’s
economical. Most of us use Parker Ink (Rs 1 per ml of ink), chelpark or Sulekha
(Rs 0.25 per ml of Ink). Well I have not conducted any scientific experiment on
that but can safely say that I cannot write as much if I spend the money on
refills(even with ball pen refills which are more economical than gel pen
refills)
3) You can be
sure that whatever you are writing is permanent. Permanent Inks are available
with the word permanent prefixed before the color of the ink and they are
pretty stubborn. I use Chelpark Permanent Blue-Black ink. I could not remove
its stubborn stain from a cloth even after using surf excel. The same cannot be
said about gel pens. Some of them may be permanent but I have checked one or
two on paper, they are washable.
4) Because
gentlemen use only fountain pens. Well I have read a book titled ‘How
to be a gentleman’, which I borrowed from my friend’s brother who is doing a
Hotel Management course. The author is from Britain and describes common
etiquettes like how to attend a party, how to shake hands, how to arrange
dinner table. He writes that gentlemen always use a fountain pen with Blue-Black
ink. It was quite a pleasant coincidence. I have been using the fountain pens
since I was in primary school and Blue-Black ink for the last 10 years! Now I
know I have at least one quality of a gentlemanJ.
5) It’s stylish!
The moment you take out your fountain pen to sign some document or write
something, the expression on the face of the stranger in front of you is worth
watching. Most of them cannot hold themselves from expressing their surprise in
words. It has been ages since I used a Fountain Pen the last time, is the most
common expression.
6) Fountain
pens look far sexier than their ball/gel counter parts. Just see the images
used to describe writing, poetry etc, you will find that the image has been
taken with the focus on a golden Nib of a fountain pen at most of the times. I
saw one ball pen named accord (manufactured in Kolkata), which has an image of
a fountain pen on its body. Even a ball pen has been made beautiful with the
image of a fountain pen.
7) Its germ
free. The rubber grips being used in almost all of the ball pens these days is
a health hazard, get it checked and you will find that it’s an adobe to many
bacteria. I haven’t seen a fountain pen with a rubber grip so far and will not
buy it even if I find one.
8) It improves
your handwriting. That’s what our parents have been telling since we were a
child. That’s the primary reason I started using it and that’s why refill pens
are banned in many schools even now including my own Creane
School , Gaya .
Drawbacks
In a poor country like India poor children cannot afford a
good quality notebook which is a must for using fountain pen. Though the use of
a fountain pen is economical, they will have to spend more than the saving on a
good quality notebook.
ये बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं है, अगर लग जाए तो ख़ून निकल आता है J
Remember the holi with ink when we used to fight with our
classmates? Some dirty boy used it as a dagger too though I haven’t heard
anyone being killed with a fountain pen. You need to be careful if you don’t
want to break the nib by dropping. You also would not like to spoil your
favorite shirt while refilling.
6 अक्टू॰ 2010
सिगरेट जलइले
पसीने की कमाई धुएँ में उड़ा
देते हैं लोग।
जितने पैसों से रामधनी, दिन भर
धुआँ उड़ाता है,
उन पैसों बिन उसका बच्चा भूखा
हीं सो जाता है।
खुद जी भर के पीते हैं, औरों
को भी पिलाते हैं,
मौत बाँटते फिरते है, दोस्ती
की कस्में खाते हैं।
चाहे जितने हों पढ़े-लिखे, खुद
को रोक नहीं पाते,
हाथ में सिगरेट जलता है, काम
करते, पढ़ते, बतियाते।
सिगरेट का धुआँ फेफड़े ही
नहीं,घुस जाता है तन-मन में,
बिन सिगरेट नहीं मनती खुशी,
दु:ख नहीं कटते जीवन में।
सिगरेट पीना कोई जुर्म नहीं, स्टाईल
स्टेटमेंट है भाई,
क्या हुआ जो इसके पीने से
पड़ोसी को उल्टी आई।
जहाँ-जहाँ भी जाते हैं, हवा
में ज़हर घोलते हैं ऐसे,
सारी दुनिया की हवा पर, इनका
अधिकार हो जैसे।
हरेक कश के साथ बनता है, धुएँ
का जो गुब्बारा,
एक दिन सुखा देगा, उनके जीवन
का फब्बारा।
जीवन के अंतिम क्षणों में वो
तरसेंगे पल पल को,
आज उड़ा दे चाहे हस के, याद
करेंगे ये नसीहतें कल को।
अभी अपनी ज़िन्दगी लोग बर्बाद
कर रहे हैं होशों हवास में,
बुढ़ापे में अस्पतालों मे नज़र
आएँगे, नए जीवन की तलाश में।
किस हक़ से लोग अपने जीवन को
करते हैं बर्बाद,
किस-किस का हक़ है उन पर, क्यों
रहता नहीं उन्हें याद।
जब होगा कैंसर, तब वे ऐसे नहीं
खिलखिलाएँगे,
प्रकाशित: लेखापरीक्षा-प्रकाश,
अप्रेल-जून 2009 अंक
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