इस अनजाने शहर में,
काश कोई अपना मिल जाता,
जिसे हम अपने मन की सुनाते,
जो अपने दिल की बताता.
साथ चलता कोई
इन अनजाने गलियारों में,
भर देता सुखद अर्थ कोई
इन बेअर्थ बहारों में.
कोई होता ऐसा कन्धा,
जिस पर जब अपना सर रख देता,
वो सुख भर देता जीवन में,
सारी पीड़ा हर लेता.
अब तक तो मेरा साथी है,
बस मेरा अकेलापन, जो साथ नहीं छोड़ता,
शहर के गलियारों में, महफ़िल में, तन्हाई में,
मुझसे मुँह नहीं मोड़ता.
प्रकाशित: सुबह
bhawuk shbdon ki sunder kavita.
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता - आभार
जवाब देंहटाएंना मिले जब कोई अपना
किसी के अपने बन जाइये
कांधा नही मिला तो क्या
किसी बेसहारा का सहारा बन जाइये