बारूद की गन्ध फैली है, माहौल है धुआँ-धुआँ
कपड़ों के चीथड़े, माँस के लोथड़े फैले हैं यहाँ-वहाँ।
कपड़ों के चीथड़े, माँस के लोथड़े फैले हैं यहाँ-वहाँ।
ये छोटा चप्पल किसी मासूम का पड़ा है यहाँ
ढूँढो शयद वह ज़िन्दा हो, ढूँढो वो है कहाँ।
ढूँढो शयद वह ज़िन्दा हो, ढूँढो वो है कहाँ।
नहीं-नहीं वो मर गया, दरिन्दों की भेँट चढ़ गया,
वह पेड़ से टंगा है खून से सना उसका कुर्ता नया।
वह पेड़ से टंगा है खून से सना उसका कुर्ता नया।
उस नौज़वान को देखो, कैसे आँखे ताक रहीं हैं आसमान को
मानो इस ज़ुल्म के लिए कोस रहा हो भगवान को।
मानो इस ज़ुल्म के लिए कोस रहा हो भगवान को।
पास में उसके फाइल पड़ी है, सर्टिफिकेट्स उसके हैं शायद
खत्म हो गया माँ बाप का लाडला, खत्म हो गई नौकरी पाने की कवायद।
खत्म हो गया माँ बाप का लाडला, खत्म हो गई नौकरी पाने की कवायद।
माँ बाप ने पढाया होगा बड़ी ज़तन से, सोंच के वह ऐसा काम करेगा,
इस दुनिया में रौशन वह उन दोनो का नाम करेगा।\
इस दुनिया में रौशन वह उन दोनो का नाम करेगा।\
पर अब कौन बनेगा बुढ़ापे की लाठी, जब वह दुनिया में नहीं रहा,
अपने जीवन का बोझ लेके वे अब जाएँगे कहाँ।
अपने जीवन का बोझ लेके वे अब जाएँगे कहाँ।
खून से सना वह सुहाग की चूड़ियों वाला हाथ किसका है
अभी जीवन शुरू हुआ होगा, चाहे जिस किसी का है।
अभी जीवन शुरू हुआ होगा, चाहे जिस किसी का है।
ये देखो पति पत्नी लगते हैं, एक और आशियाँ उजड़ गया,
कोई वहशी इनके बच्चों को यतीम कर गया।
उनके बच्चे घर पर कर रहे होंगे उनका इंतज़ार
हँसती खेलती कलियों पर छा गया स्याह अन्धकार।
हँसती खेलती कलियों पर छा गया स्याह अन्धकार।
इस लड़की को देखो, इसका ब्याह होने वाला होगा
साल छ: महीनों में इसका दूल्हा आने वाला होगा।
साल छ: महीनों में इसका दूल्हा आने वाला होगा।
बाप भाई जो लगे हुए थे, इसकी शादी की तैयारी में
अब हाथों की नब्ज़ों में जान ढूंढ रहे हैं बेचारी मेँ।
अब हाथों की नब्ज़ों में जान ढूंढ रहे हैं बेचारी मेँ।
उस नौजवान को देखो, घायलों को बचाने में बेतहाशा लगा हुआ
यमराज भी किसी कोने में, देख रहा होगा उसको ठगा हुआ।
बस चन्द पैसों के लालच में या नफ़रत के उन्माद में
उजाड़ डाले कई घर, सोंचा नहीं कुछ भी पहले या बाद में।
उजाड़ डाले कई घर, सोंचा नहीं कुछ भी पहले या बाद में।
नवयुवकों को बहका कर, घर उज़ड़वाए मुम्बई, दिल्ली, अहमदाबाद,
तुम सीमापार से तमाशा देखते रहे, कर गए कितनो को बर्बाद।
तुम सीमापार से तमाशा देखते रहे, कर गए कितनो को बर्बाद।
तुम्हें जानवर नहीं पुकार सकता, वे शिकार करते हैं भूख मिटाने को
वे अकारण नहीं मारते किसी को, तुम खून से खेलते हो मन बहलाने को।
यह ज़िन्दादिलों का मुल्क है, तू मौत बाँटते-बाँटते थक जाएगा,
इस देश की मिट्टी में लहलहाती, खुशियोँ की फसल ही पाएगा।
इस देश की मिट्टी में लहलहाती, खुशियोँ की फसल ही पाएगा।
इतना रहम कर ऐ अधर्मी मत ले नाम किसी धर्म का,
दुनिया का कोई भी धर्म नहीं समर्थन करता इस कुकर्म का।
दुनिया का कोई भी धर्म नहीं समर्थन करता इस कुकर्म का।
प्रकाशित: सुबह सन्युक्तांक 2009.
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Gautam Kumar